- दो भागो में विभाजित इस आलेख में श्री कृष्णा और उनकी प्रेयसी राधा रानी की परनके भूमि ब्रज क्षेत्र के दर्शनीय स्थलों का वर्णन है | इस प्रथम भाग में वृन्दावन के मंदिरों एवं स्थानों का वर्णन दिया गया हैं |
हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के 10 अवतार माने गये है जिनमें द्वापर में वे कृष्णावतार के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुये। श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर समस्त अत्याचारियों का अन्त किया और धर्म की स्थापना की। मानव जाति के कल्याण का अपना उद्देश्य पूर्ण करने के उपरान्त वे गोलोक पधार गये।
इस अवतार में, उन्होंने धर्म की जीवन की विभिन्य आयाम - आद्यात्मिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक - के सन्दर्भ में विवेचना की है जो भारतीय संस्कृति के वैचारिक स्तम्भ बने | एक ओर उन्होंने पाण्डवों को अपने ही भाइयों से महाभारत का युद्ध करने को प्रेरित किया, वहीं दूसरी ओर युद्ध के समय अर्जुन, जो भावुक हो युद्ध से विमुख हो रहा था, को जीवन के माया-मोह के बंधनो से निकालने वाला और सुख-शान्ति प्रदान करने वाला गीता के ज्ञान से अवगत कराया। गीता के माध्यम से उनके द्वारा दिये गये उपदेशों में जीवन को लेकर विविध अध्यात्मिक सिद्धान्त है। सुख-दुख, आत्मा की अमरता, भक्ति-साधना, कर्तव्यपालन का जो संदेश उन्होंने दिया उससे वे सच्चे अर्थो में जगदगुरू सिद्ध हुये। जीवन के सार पर गीता जैसा न तो कोई अन्य ग्रन्थ है और न उस जैसी कोई सटीक व्याख्या।
ब्रजभूमि श्रीकृष्ण की प्राकट्य व लीला की भूमि है जिसके दर्शनार्थ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में यात्री यहां पुण्य प्राप्त करने और उनकी अलौकिक लीलाओं से जुड़े स्थानों पर भ्रमण करने और प्रेम के उस भाव को महसूस करने को आते हैं। मथुरा ब्रजभूमि का वह प्रमुख स्थान है जहां पर कृष्ण का जन्म हुआ था और उन्होंने अपने मामा और मथुरा के अत्याचारी राजा कंस का वध किया था। विदेशी व भारतीय पुराविदों ने भी इस बात को पाया है कि कटरा केशवदेव ही कंस का कारागार था जिसके आस-पास ही मथुरा नगरी स्थापित थी। कटरा केशवदेव में समय-समय पर कई मन्दिरों को निर्माण हुआ। इनमें से कुछ समय के प्रभाव से विनष्ट हुये तो कुछ को बाहरी आक्रमणकारियों ने पूरी तरह से ध्वस्त किया। इस भूमि का हृदय वृन्दावन है।
ब्रज भूमिब्रज शब्द अपने आपमें व्यापकता लिये हुये है। सत, रज, तम इन तीनों गुणों से युक्त परब्रह्म को ही ब्रज कहते हैं। वेदों में भी ब्रज शब्द का प्रयोग हुआ है। गौचारण व ग्वालों की स्थली भी ब्रज कहलाती है। पर जब समान्यतया ब्रज भूमि की बात होती है तो इसे दो भागों में देखा जा सकता है, एक भाग आते जिसमे है महावन, मधुवन, तालवन, भद्रवन, कुमुदवन आदि | जबकि दूसरे में वृन्दावन, गोवर्धन, बरसाना, नन्दगाँव एवं उनसे जुड़े आस-पास के दूसरे स्थान आते है। यह सभी जगहों को ब्रजमण्डल भी कहा जाता है।
इस ब्रजभूमि में अनेकानेक घाट, वन, कुण्ड-सरोवर, मन्दिर, आश्रम, गोशालायें आदि हैं। इसी भूमि के स्थान-स्थान पर भगवान कृष्ण से लीलाओं के जुड़े प्रसंग हैं और वहां पर कोई न कोई मन्दिर है। ब्रजमण्डल चैरासी कोस परिक्रमा परिपथ के अन्दर की भूमि को कहा जाता है जिसकी कृष्ण भक्त परिक्रमा करते हैं
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कृष्ण की प्रणय भूमि - वृन्दावनमथुरा से 15 किमी की दुरी पर स्थित वृन्दावन को राधा-कृष्ण की प्रणय भूमि भी कहा जाता है | यहीं पर कृष्ण ने राधा के साथ दिव्य लीलायें की। इसे ब्रजभूमि के सभी तीर्थों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। वृन्दावन को स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपना श्रीविग्रह बताया है एवं अपना गोलोक धाम बताया है। इसी लिये लोग श्री वृन्दावन धाम में वास की कामना करते है ताकि एक बार उस छवि का अहसास कर सके जिसे देखने के लिये कई भक्त पागल से हो जाते हैं। पवित्र भूमि वृन्दावन की सीमा में जैसे ही प्रवेश करते ही एक अदृश्य भाव, एक अदृश्य शक्ति का अहसास होने लगता है। वैसे तो यहां पर हजारों मन्दिर है किन्तु यह पूरा धाम श्री कृष्ण का ही स्थूल स्वरूप है।
वृन्दावन को ब्रज का हृदय माना जाता है। महाकवि सूरदास ने वृन्दावन की महिमा पर बहुत कुछ लिखा है। यह भी कहा जाता है कि अयोध्या, चित्रकूट, नासिक, बदरीनाथ या रामेश्वर केदारनाथ में वह आनन्द नही जो वृन्दावन में हैं।
वृन्दावन के दर्शनीय स्थलवृन्दावन में अनेकानेक मन्दिर सरोवर, कुण्ड कूप, वन, वृक्ष, समाधियां एवं घाट हैं। इनमें कुछ पुराने मन्दिर हैं जो ध्वस्त होते रहे और बनते गये। इसके अतिरिक्त अनेकों नये मन्दिरों की भी स्थापना हुई। नये मन्दिर नई शैली व नई तकनीक से बने है। इनका बाहरी आकर्षण कम नही है। पुराने मन्दिर जहां तंग गलियों में हैं जबकि नये मन्दिर खुले अहाते में बने है।
बांकें बिहारी मन्दिर वृन्दावन के पुराने मन्दिरों में सबसे महत्वपूर्ण है बांके बिहारी मन्दिर जिनके दर्शन के बिना वृन्दावन की यात्रा भी अधूरी मानी जाती है। इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है। जिसके विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं। इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। बांके बिहारी जी संत संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी की कृष्ण भक्ति से निधिवन में प्रकट हुये। वे उनकी भक्ति में में कदर डूब जाते थे श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास ने पास रहने की इच्छा प्रकट की। भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई। हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया। पहले बाकें बिहारी जी की सेवा निधिवन में होती थी।
सन् 1864 में जब वर्तमान मन्दिर बना तो निर्माण के बाद उनकी सेवा यहां होने लगी। हरिदास जी वे संगीत सग्राट तानसेन के गुरू थे। यहाँ पर मंगला आरती साल में सिर्फ एक बार जन्माष्टमी के अवसर पर होती है। अक्षय तृतीया पर चरण दर्शन, ग्रीष्म ऋतु में फूल बंगले, हरियाली तीज पर स्वर्ण-रजत हिण्डोला, जन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा पर बंशी एवं मुकुट धारण, बिहार पंचमी, होलिका आदि उत्सवों पर विशेष दर्शन होते हैं। उस समय तिल धरने को स्थान भी नही होता है। हर साल मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है। यहां पर प्रातःकालीन आरती नही होती है। इसके अतिरिक्त नियमित सायंकालीन आरती होती है।
रंगनाथ जी मन्दिरयह वृन्दावन का सबसे विशाल मन्दिर है जो दक्षिण भारतीय शैली में बना है। इसका निर्माण सेठ श्री राधाकृष्ण, उनके भाइयों - सेठ लक्ष्मीचन्द्र तथा गोविन्द दास जी, ने अपने गुरु की प्रेरणा से कराया था। मूल मन्दिर में श्री रंगनाथ जी विराजमान हैं और लक्ष्मी जी उनके चरणों की सेवा कर रही हैं। यहाँ पर सोने का साठ फुट ऊँचा ध्वज स्तम्भ हे, सोने की मूर्तियाँ, एवं एक विशाल रथ दर्शनीय है। चैत्र मास में यहाँ पर भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें एक दिन रंगनाथ जी रथ पर सवार होते हैं।
Rangnathji Mandir
श्री राधा गोविन्द मन्दिर
रंगनाथ मन्दिर के समीप ही यह प्राचीन एवं प्रसिद्ध मन्दिर है जिसमे श्री राधागोविन्द जी विद्यमान है। जनश्रुतियों के अनुसार प्राचीन समय में यह मन्दिर सात मंजिला था जिसके शिखर में ढाई मन धी से दीपक जलता था जो दूर-दूर से दिखता था। औरंगजेब की सेना ने अनेक मन्दिरों को ध्वस्त करवाया थे जिनमे से एक यह मंदिर भी था | औरंगजेब की मृत्यु के 15 साल बाद, नन्द कुमार बसु ने इसका पुनः निर्माण करवाया।
श्री गौरांग महाप्रभु मन्दिर - यह मन्दिर इमलीतला में स्थित है और चैतन्य महाप्रभु ने यहाँ तपस्या की थी।
गोदाविहार मन्दिर - इस मन्दिर में देवी-देवताओं एवं ऋषि-महर्षियों की सैकड़ों मूर्तियां स्थापित है। यहां पर सात घड़ों के रथ पर सवार सूर्यदेव की भी एक प्रतिमा है।
नृसिंह मन्दिर - श्री राधावल्लभ घेरे के प्रवेश द्वार के पास ही प्राचीन श्री नृसिंह जी भगवान् का मन्दिर है। नृसिंह चतुर्दशी को सांयकाल के समय यहाँ हिरण्यकशिपु वध की लीला का आयोजन होता है।
राधा दामोदर मन्दिर - इसमें श्री राधा-दमोदर जी महाराज के दर्शन होते है। इनके साथ सिंहासन में श्री वृन्दावन चन्द, श्री छैल चिकनिया, श्री राधाविनोद और श्री राधामाधव के विग्रह विराजमान हैं। सनातन गोस्वामी जी गोवर्धन की नित्य परिक्रमा करते थे। वृद्धावस्था में जब वे परिक्रमा करने में असमर्थ हो गये तब श्री कृष्ण ने बालक रूप में उनको दर्शन दिये तथा उन्हें गोवर्धन शिला प्रदान कर उसी की चार परिक्रमा करने का आदेश दिया। उस शिला में श्री कृष्ण जी का चरण, गाय के खुर एवं बंशी का चिन्ह अंकित है।
राधा रमण मन्दिर - राधा-रमण जी का मन्दिर वैष्णव सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है।
श्री राधा श्यामसुन्दर मन्दिर - सन् 1578 की बसंत पंचमी को श्रीराधा रानी जी ने अपने हृदय-कमल से श्री श्याम सुन्दर जी को प्रकट करके अपने परम भक्त श्री श्यामा नन्द प्रभु को प्रदान किया था। सम्पूर्ण विश्व में श्री श्याम सुन्दर जी ही एक मात्र ऐसे श्री विग्रह हैं जो श्री राधा रानी जी के हृदय से प्रकट हुए हैं। कार्तिक मास में प्रतिदिन यहाँ भव्य झाँकियों के दर्शन होते हैं।
श्री गोविन्द देव मन्दिर - यह वृन्दावन का ईंट-पत्थरों का बना प्रथम मन्दिर है। श्री गोविन्द देव जी का विग्रह श्री रूप गोस्वामी जी को गोमा टीला से मिला था। इस मन्दिर का निर्माण जयपुर नरेश श्री मानसिंह ने संवत 1647 में कराया था। औरंगजेब के शासन काल में इस मन्दिर की ऊपरी मंजिलों को तोड़ दिया गया था। सन् 1748 ई० में पुनः श्री गोविन्द देव जी के विग्रह की यहाँ स्थापना हूई। बंगाल के भक्त श्री नंदकुमार वसु ने वर्तमान मन्दिर का निर्माण कराया। यहाँ पर गोविन्द देव जी और उनके वाम भाग में श्री राधा जी विराजमान हैं।
Birla Mandir. On pillar entire Bhagavad Gita written
श्री मदन मोहन मंदिर - यह मन्दिर आदित्य टीला पर स्थित है। मुगलों के हमलों के कारण श्री मदनमोहन जी को करौली में विराजमान कर दिया गया। आज भी वे करौली में ही सेवित हैं। पुनः इस मन्दिर का निर्माण नन्दकुमार वसु ने कराया। पुरी के राजा प्रतापरुद्र के पुत्र श्री पुरुषोत्तम ने श्री राधा एवं श्री ललिता जी के विग्रह वृन्दावन भेजे। श्री राधा जी को श्री मदन मोहन जी के वामांग में एवं उनकी सखी ललिता जी को दाहिने भाग में प्रतिष्ठित कर दिया गया। ये सभी आज भी इस मन्दिर में सेवित हैं।
शाह जी का मन्दिर - यह टेड़े खम्भे वाले मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर में संगमरमर के टेड़े खम्भे आकर्षित करते हैं।
गोपीश्वराय महादेव - जब श्री कृष्ण महारास कर रहे थे, तो शंकर जी के मन में इस दिव्यलीला को देखने की इच्छा हुई। पुरुष का प्रवेश वर्जित होने से प्रधान सखी ललिता जी से उन्होंने गोपी बनने की दीक्षा ली। गणेश जी, पार्वती जी, श्री नन्दीश्वर जी के साथ शंकर जी यहाँ गोपी रूप में विराजमान हैं।
मीराबाई मन्दिर - कृष्णा भक्त मीराबाई, जिनकि कृष्ण प्रेम की मिसाल दी जाती है, का मंदिर शाहजी मन्दिर के समीप ही यह मन्दिर है | इसके अतिरिक्त यहां पर दूसरे अनेक मन्दिर है।
कालीदह - यमुना जी में एक स्थान पर विषधर कालियानाग का एक कुण्ड था जिसके विष के नदी जल में मिलने के उसमें उतरने वाले सभी मर जाते थे। जब श्री कृष्ण को यह पता चला तो उन्होंनें निकट के कदम्ब वृक्ष पर चढ़कर उस कुण्ड में छलांग लगा दी। इसके बाद उन्होंने अपनी लीला जो दिखाई तो कालिया नाग की सारी शक्ति क्षीण हो गयी और वह उनके शरणागत हो गया।
केशीघाट - उक्त स्थान पर श्री कृष्ण ने यहाँ केशी दैत्य का वध किया था। यहाँ पर यमुना जी का मन्दिर भी स्थित है। नित्य सायं यहाँ यमुना जी की आरती होती है।
अक्रूर घाट - अक्रूर जी जब कृष्ण और बलराम जी को वृन्दावन से मथुरा ले जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में रथ को रोककर श्री कृष्ण-बलराम जी से कहा कि मैं अभी यमुना स्नान और संध्या करके आता हूँ। जब अक्रूर जी ने यमुना जी में डुबकी लगाई तो उन्हें यमुना के अन्दर कृष्ण-बलराम जी के दर्शन हुए किन्तु बाहर निकलने पर रथ पर उन दोनों को रथ पर सवार पाया। इस भ्रम के चलते उन्होंने वहां पर दोबारा डुबकी लगायी तो उन्हें श्री कृष्ण के विराट रूप के दर्शन हुए।
Pagal Baba Mandir Vrindavan
वृन्दावन के कुछ नवीन मन्दिर
वृन्दावन में पुराने मन्दिरों के साथ कई नवीन मन्दिर भी हैं जो दर्शनीय है। इन मन्दिरों को निर्माण पांच दशक से पुराना नही है। इनमें नई शैली व तकनीक का प्रयोग हुआ है।
ISKCON
इस्काॅन
मन्दिर - इसे अंग्रेज या इस्काॅन मन्दिर भी कहा जाता है। इसका निर्माण भक्तिवेदान्त स्वामी द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ के तत्वावधान में सन् 1975 में हुआ। विदेशी शिष्य यहां पर सेवापूजा आदि करते है इसलिये आम बोलचाल में इसे अंग्रेज मन्दिर कहा जाता है। मध्य कक्ष में श्री कृष्ण-बलराम के बहुत ही सुन्दर विग्रह हैं। बायीं ओर श्रीनिताई-गौरांग महाप्रभु सेवित हैं। दायें कक्ष में श्री राधा-श्यामसुन्दर युगल किशोर अपनी प्रियतमा सखी ललिता-विशाखा के साथ सुशोभित हैं।
बिरला मन्दिर - इसकी स्थापना उद्येागपति जीडी बिरला ने करवाई थी। इसके एक स्तम्भ पर गीता के श्लोक अंकित है।
प्रेम मन्दिर- इसकी स्थापना कुपालु जी महाराज ने करवाई। यहं वृन्दावन का भव्य मन्दिर है जो 54 एकड़ भमि पर बना है। इसमें दिन की बजाय रात्रि को अधिक लोग आते है। मन्दिर के अहाते में कृष्ण से जुड़ी अनेकों झांकियो को प्रदर्शित किया गया है। मन्दिर में रात्रि के समय जबरदस्त भीड़ होती है। रात्रि के समय अलग अलग प्रकार की प्रकाश में मन्दिर विस्मयकारी लगता है। पागल बाबा मन्दिर- यह मन्दिर कृष्ण भक्ति में लीन एक बाबा ने करवाया था जिनको लोग पागल बाबा कहते थे।
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2 Pictures of Vrindanvan during Janmasthami
3 दूसरे भाग को पढ़ने के लिए